ज़ोर-ज़ोर चहुँओर,
ना जाने कैसा शोर,
ना तो है बदरा,
ना ही नाचें मोर,
बैरन पड़ी निशा में,
लगे कोई है चोर,
सारे सुख के वासी,
पीड़ित उससे घनघोर,
जो भी गया ढूँढने,
ना लौटा घर की ओर,
भई चोर है या आदमखोर,
मिलके सबने ठानी,
लोहा लेंगे सब पुरज़ोर।
लेखक- आयुष कुमार